आमतौर पर एक साल या उससे छोटे बच्चे काफी शांत लगते हैं। न तो ज्यादा रोते-चिल्लाते हैं और हमेशा दूसरों को हंस कर मिलते हैं। लेकिन ऐसा क्या हो जाता है कि कुछ बच्चे दूसरों को खुद के पास नहीं आने देते और कुछ भी कहने-सुनने पर दूसरों को मार देते हैं?
कुछ ऐसा ही हुआ था मेरी दोस्त के बेटे के साथ भी। उसके जन्म से लेकर एक-सवा साल तक वह बहुत ही शांत और हंसमुख रहता था, लेकिन जैसे-जैसे उसने चलना, बोलना शुरू किया, वह काफी उत्तेजक या गुस्सैल हो गया। अगर दूसरे बच्चे उसकी किसी चीज को छू भी जाते तो वह जोर से उन्हें मारता। हालांकि समझाने पर तुरंत माफी भी मांग लेता, लेकिन उसे उसकी गलती समझ में ही नहीं आती थी।
अपने बच्चे की ऐसी हरकतों पर बेचारे माता-पिता के पास शर्मिंदा होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता था। वे समझ ही नहीं पा रहे थे आखिर बच्चा ऐसा करता क्यों है और उसे कैसे रोका जाए।
क्यों मारते हैं छोटे बच्चे दूसरों को?
अगर आपका बच्चा उग्र हो रहा है, दूसरों को मार रहा है तो जरूर उसके पीछे कुछ न कुछ कारण होगा। माता-पिता के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि उसके बच्चे के गुस्सैल होने का क्या कारण है।
1. माता-पिता का ध्यान आकर्षित करना
कई बार जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता का ध्यान बच्चों की गतिविधियों पर कम हो जाता है। बच्चा घर पर कहीं है, वह क्या कर रहा है, क्या नहीं इस बारे में वे ज्यादा फिक्रमंद नहीं होते। ऐसे में जब घर में कोई दूसरा आ जाता है तो बच्चे को लगता है कि अब मम्मी-पापा का पूरा ध्यान उन पर है। उसे वह अच्छा नहीं लगता। साथ ही जब वह किसी को मारता या धक्का देता है तो हम तुरंत अपने बच्चे को प्रतिक्रिया देते हैं। उसे लगता है कि जब मैं किसी को नुकसान पहुंचाता हूं तो मम्मी-पापा मुझे ही देखते हैं। इसी सोच के साथ बच्चा दूसरों को मारना, अपनी आदत बना लेता है।
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा दूसरों को नुकसान न पहुंचाए तो इस स्थिति में आप अपने बच्चे की ऐसी चीजों पर अपनी प्रतिक्रिया तुरंत देना बंद कर दें। अगर आपको बच्चे को समझाना भी है तो उसे बाद में समझाएं।
2. जिज्ञासावश
कई बच्चे बहुत उत्सुक और जिज्ञासु होते हैं। वे यह तक देखना चाहते हैं कि अगर मैं दूसरे बच्चे को मारूंगा या धक्का दूंगा तो वह क्या करेगा। यह बच्चों की बहुत आधारभूत प्रक/ति है। कई बच्चे अपनी इसी जिज्ञासा को पूरा करने के लिए जाने-अनजाने दूसरे बच्चों को मारते या उन पर अपना गुस्सा निकालते हैं।
ऐसी स्थिति में सबसे बेहतर रहेगा कि आप अपने बच्चे का ध्यान किसी दूसरी चीज की तरफ आकर्षित करें या फिर बच्चे को इस परिस्थिति से अलग कर दें।
3. शब्दों की कमी की वजह से
छोटे बच्चे जो अपनी भावनाओं को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाते, अक्सर वे अपने अंगों के इस्तेमाल से हमें अपनी भावनाओं से अवगत कराते हैं। आपने भी कई बार देखा होगा कि अगर कोई आपके बच्चे जो जरूरत से ज्यादा परेशान करता है या उसे छेड़ता है तो बच्चा रोने के साथ-साथ दूसरे व्यक्ति को मारता भी है। इसमें गलती सिर्फ आपके बच्चे की नहीं है, कि वह गुस्से में आकर दूसरों को मार रहा है। बल्कि वह अपनी मौखिक असमर्थता को भी बताता है। ऐसे में बच्चे अगली बार भी उस व्यक्ति से मिलने पर उससे दूरी बनाए रखना ही पसंद करते हैं।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के काबिल भी हो जाएगा। इसीलिए ऐसी स्थिति में आपको अधिक कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।
4. अपनी ताकत का अंदाजा लगाने के लिए
इस बात को आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब बच्चे का जन्म होता है तो वह सिर्फ लेटा रहता है, वह दूसरों पर अपनी आवश्यकताओं के लिए निर्भर होता है। उसके बाद वह अपने हाथों और उंगलियों का इस्तेमाल चीजों को पकड़ने के लिए करता है और उसके बाद वह अपने हाथों का इस्तेमाल अपने दिमाग में सोची गई चीज के लिए करता है। ऐसे में जब बच्चे बड़े हो रहे होते हैं तो वे अपनी ताकत का पहचानने के लिए भी कई बार दूसरे बच्चों या बड़ों को मारते भी हैं। आपने देखा भी होगा, कई बच्च दूसरों को धक्का देने पर काफी खुश होते हैं। इससे उन्हें अपनी बढ़ती ताकत का भी अनुभव होता है।
ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे को बातचीत के माध्यम से समझाएं कि अब तो वह बहुत बड़ा हो रहा है और उसके किसी को मारने से दूसरे को दर्द भी होता है और चोट भी लग सकती है। बच्चे अक्सर दूसरों के साथ सहानुभूति रखते हैं। ऐसे में दूसरों के दर्द को जानकर बच्चा काफी हद तक कोशिश करेगा कि वह दोबारा न मारे।
5. माहौल का असर
सभी का मानना होता है कि बच्चों के लिए कार्टून देखना बहुत अच्छा होता है। लेकिन कभी-कभी ये कार्टून इतने हिंसक भी होते हैं कि बच्चा इनसे मारना-पीटना और दूसरों को नुकसान पहुंचाना भी सीख सकता है। इसके अलावा कई बार घर-परिवार का भी माहौल ऐसा होता है, जहां बच्चा दूसरों को मारना सीख सकता है। जैसे कि अगर आप बच्चे के बड़े भाई या बहन को पढ़ाई या उनकी अन्य गलतियों पर मारते हों तो।
बच्चे तो वहीं करते हैं जो वे अपने आस-पास होता हुआ देखते हैं। ऐसे में माता-पिता को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि बच्चे को सकारात्मक माहौल मिल रहा है या नहीं। वह टेलीविजन पर किस प्रकार के कार्यक्रम देख रहा है।
बच्चों को हमेशा रोकना-टोकना या डांटना उनकी किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता। बच्चों की परेशानी के कारण को जानने के बाद आप उसका हल ढूंढ़ें। और अगर कभी आपको बच्चे की परेशानी या समस्या की कोई ठोस वजह न मिले तो उसके व्यवहार में जरूरी बदलाव के लिए आप बाल मनोवैज्ञनिक या विशेषज्ञों से जरूर मिलें।
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