अगर आपका बच्चा स्कूल में अपना ध्यान पूरा नहीं लगा पा रहा या फिर वह दिनभर चिड़चिड़ा रहता है तो जरूरी नहीं कि वह बीमार हो। यह भी हो सकता है कि उसकी दिनभर की नींद पूरी नहीं हो पाती। पढ़ने वाले बच्चों के लिए अपने मानसिक तनाव को कम करना भी बेहद जरूरी है, जिसे वे नींद से पूरा करते हैं। आइए जानते हैं कि आपके बच्चे के लिए कितने घंटे की नींद जरूरी है और आप उसमें बच्चे की कैसे मदद कर सकते हैं।
नींद पर तो सभी का अधिकार है, लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, उनकी नींद के पैटर्न में परिवर्तन आने लगता है। जैसे कि नवजात शिशु दिन में लगभग 18 से 20 घंटे तक सोते हैं, वहीं छोटे बच्चे की नींद 15 घंटे तक सीमित हो जाती है। सिर्फ एक अच्छी बात यह है कि इस उम्र के बच्चे अपनी दिन या दोपहर की नींद को छोड़ देते हैं और रात में बड़ों की तरह सोना शुरू कर देते हैं।
सेहत तन से ही सेहत मन जुड़ा हुआ है। ऐसे में बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सही घंटों की नींद बेहद जरूरी है। खासकर तब जब बच्चे स्कूल जाने लगते हैं, जहां वे पढ़ाई और अन्य गतिविधियों के कारण काफी थक भी जानते हैं।
सही नींद के लिए क्या करें माता-पिता :
बतौर माता-पिता यह आपकी जिम्मेदारी आपका बच्चा एक दिन में कम से कम लगभग 9 से 13 घंटे की नींद ले। इसकी वजह यह है कि हर बच्चे का नींद पूरी करने का अपना तरीका है। कुछ बच्चे सिर्फ रात में ही सोते हैं तो कुछ बच्चे स्कूल से लौटने के बाद थक कर लगभग 1 से 2 घंटे की नींद पूरी करते हैं।
माना जाता है कि नींद पूरी न हो पाने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, बढ़ता तनाव, चीजों को भूल जाना या स्मरणशक्ति का कमजोर होना और उन्हें किसी भी चीज को सीखने में वक्त लगना। आप समझ सकते हैं कि बच्चों की नींद उनके शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक विकास से किस तर से जुड़ी हुई है।
3 से 5 साल की उम्र के बच्चों के लिए
- सही समय पर कमरे में रोशनी कम कर दें: बच्चों को जबरदस्ती जैसे खिलाया नहीं जा सकता, वैसे ही उन्हें जबरदस्ती सुलाया भी नहीं जा सकता। लेकिन आप उन्हें इसकी आदत डाल सकते हैं। बच्चे को रोजाना एक जैसा माहौल दें। अगर आपने उनके रात को सोने का समय 9 बजे निर्धारित किया है तो आप उन्हें खाना खिलाकर उनके बिस्तर में ले जाएं। वहां आप रोशनी कम कर दें। जरूरी नहीं है कि बच्चा बिस्तर में जाते ही सो जाएगा, लेकिन कम से कम उसके दिमाग को यह संकेत मिलने लगेंगे कि अब उसके सोने का वक्त हो गया है।
- सोने से पहले उन्हें कहानी सुनाएं: आमतौर पर स्कूल की शुरुआत में बच्चे सोने से मना करने लगते हैं। वे थका हुआ तो महसूस करते हैं, लेकिन इस पर भी सोना नहीं चाहते। ऐसे में बच्चों को बिस्तर में ले जाने का सबसे बढि़या तरीका है, उन्हें कहानी सुनाना। कहानी के नाम पर छोटे बच्चे जल्दी से आपकी हर बात मान लेंगे। वैसे भी कहानी सुनाने का मतलब है कि अब बच्चे को कहानी के बाद सोना है।
- बच्चे के लिए अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करें: बच्चे को बिस्तर में लेटा कर आप टेलीविजन या मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकते। बच्चे अपने माता-पिता को देखकर सीखते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपका छोटे बच्चे समय पर सोएं तो उसके लिए जरूरी है कि आप भी अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाएं।
- नींद टूटने पर उन्हें सहज महसूस कराएं: अक्सर छोटे बच्चे बुरे सपने में डरकर नींद से जाग जाते हैं। ऐसे में बेहद जरूरी है कि आप उन्हें सहज बनाने का काम करें, न कि उनसे बातें करने लगें। इससे बच्चे की नींद पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।
- बच्चे को प्रोत्साहन दें: जैसे कि आमतौर पर हम अपने बच्चों को उनके अच्छे कामों और प्रयासों के लिए प्रोत्साहित करते हैं, वैसे ही आपको बच्चे को समय पर सोने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए। आप बच्चे को कहें कि अगर वह अपने स्कूल के दिनों में सही समय पर सो जाएगा तो आप उसे सप्ताहंत में बाहर घूमने लेकर जाएंगे या उसके साथ थोड़ा अतिरिक्त समय बिताएंगे।
6 से 11 साल की आयु के बच्चों के लिए
- सोने से पहले स्क्रीन टाइम को करें तय: आमतौर पर सभी घरों में रात के वक्त टेलीविजन, मोबाइल फोन या लैपटॉप आदि का अधिक इस्तेमाल होता है। और अध्ययन बताते हैं कि अगर बच्चा सोने से दो घंटे पहले तक स्क्रीन देखता हो तो उसकी आंखें सोने के लिए समायोजित ही नहीं हो पातीं। साथ ही उनका दिमाग भी देर तक शांत नहीं होता। इसीलिए आप बच्चे की अच्छी नींद के चलते उनके स्क्रीन टाइम को सोने से दो घंटे पहले ही समाप्त कर दें।
- स्कूल का होमवर्क पहले निपटवाएं: इस उम्र के बच्चों पर स्कूल का होमवर्क का भी अच्छा-खासा दबाव होता है। दोपहर में बच्चे स्कूल से आकर थक जाते हैं, जबकि शाम को उनकी ट्यूशंस या अतिरिक्त क्लासेज में वे व्यस्त हो जाते हैं। ऐसे में पाया गया है कि बड़ी उम्र के बच्चे आमतौर पर रात को सोने तक अपने स्कूल का होमवर्क ही निपटाते रह जाते हैं। यह एक अच्छी आदत नहीं है। इसीलिए आप बच्चों को एक अच्छा टाइम टेबल बनाने में मदद करें ताकि वे सही समय पर काम पूरा कर के सो सकें।
- रात को हल्का भोजन है सही: रात के समय हल्का और कम मात्रा में भोजन करना एक अच्छी आदत है। अगर आपके बच्चे सोने से पहले या जंक फूड खाते हैं तो इससे भी उनकी नींद पर नकरात्मक असर होता है। इसीलिए कोशिश करें कि बच्चे रात को सोने से लगभग दो से ढाई घंटे पहले अपना भोजन कर लें।
- सोने का एक समय निर्धारित करें: आमतौर पर बड़े बच्चे अपनी इच्छा और जरूरत के अनुसार सोने के लिए अपने कमरे और अपने बिस्तर में जाते हैं, जो कि बिल्कुल भी सही आदत नहीं है। किसी टेलीविजन प्रोग्राम या मोबाइल और वीडियो गेम के चलते बच्चों के सोने के समय में परिवर्तन नहीं आना चाहिए। हमारा दिमाग एक जैसी दिनचर्या को आसानी से स्वीकार कर लेता है, लेकिन जब बार-बार सोने के समय में बदलाव होते हैं तो इसका असर हमारी नींद पर भी होता है। इसीलिए हमेशा एक ही समय में बच्चे को सुलाने की कोशिश करें।
- सोने से पहले दिमाग को शांत रखें: हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी नींद आए। इसीलिए जरूरी है कि बच्चे के दिमाग को भी शांत बनाया जाए। हमारी नींद पर तनाव का बहुत अधिक असर होता है। जिसमें कोर्टिसोल नामक हॉर्मोन अहम भूमिका निभाता है। इसका अधिक स्तर हमारे बढ़ते मानसिक तनाव का नतीजा है। इसीलिए कोशिश करनी चाहिए कि जब भी बच्चा सोने के लिए जाए, उससे पहले मानसिक शांति से जुड़ी गतिविधियां की जाएं, जैसे कि धीमा संगीत, कहानियों की किताबें या माता-पिता बच्चे से बातचीत करें।
- सही समय पर उठाने की आदत डालें: बच्चों को सही समय पर सुलाना चाहते हैं तो उन्हें सही समय पर उठाना शुरू कर दें। बच्चे की अगर नींद पूरी न हुई हो तो ऐसे में वे दिन में सही समय पर उठ नहीं सकते। कई बार माता-पिता को अपने बच्चे के साथ इस प्रकार की जबरदस्ती भी करनी पड़ती है ताकि वे दिन और रात की नींद में फर्क को भी समझ सकें। ऐसे में जब आपके बच्चे की रात की नींद पूरी न हुई हो तो आप उन्हें सीखा सकते हैं कि सही समय पर सोना उनके लिए कितना आवश्यक है।