रक्षा बंधन के लिए भाई का होना बहुत जरूरी है, लेकिन क्या वाकई सिर्फ एक भाई ही हमेशा अपनी बहन की रक्षा कर सकता है या कभी-कभी बहनें भी अपने भाई या अपनी दूसरी बहन को जीवन में संभालने का काम कर सकती हैं?
अगर टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की बात करें तो शायद रक्षा-बंधन भाई-बहन का कम और मीठा बांटने का त्योहार ज्यादा है। इन विज्ञापनों में कहीं छोटे भाइयों को अपनी बड़ी बहन को तंग करते हुए दिखाया जाता है, तो कहीं बहनें अपने भाइयों को उनकी हर समस्या से बचाती हुई दिखती हैं और बाद में दोनों एक-दूसरे का मुंह मीठा करते हुए दिखाई देते हैं। वहां कहीं बहन-भाई में भेद नजर नहीं आता। पर फिर भी रक्षा-बंधन को सिर्फ बहन की रक्षा से ही जोड़ कर देखा जा सकता है? क्या सिर्फ एक भाई ही बहन की रक्षा कर सकता है?
मेरी एक दोस्त है, मिनाक्षी। वे दो बहने हैं और बचपन से ही वे रक्षा बंधन वाले दिन काफी उदास रहती थीं। वैसे तो उनके चचेरे-ममेरे भाई थे, लेकिन उनका दिल उनसे उतना न जुड़ता कि वे उनके लिए खास हो जाएं। एक दिन मिनाक्षी जो छोटी बहन थी, उसने अपनी दीदी कविता को उसकी दोस्त से बात करते सुना कि अगर मेरी छोटी बहन को किसी ने नजर उठाकर भी देखा तो वह उसे छोड़ेगी नहीं।
कविता की यह बात मिनाक्षी के दिल में उतर गई और उसने उस दिन से अपनी बहन को ही अपना भाई मान लिया। तब से अब तक हर साल रक्षा बंधन और भाई-दूज के दिन दोनों बहनें मिलती हैं और मिनाक्षी अपनी बड़ी बहन को राखी बांधती है।
अगर किसी परिवार में भाई और बहन दोनों हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। जहां बहन को भाई के रूप में अपना दोस्त और भाई को बड़ी बहन में मां और छोटी बहन में दोस्त का प्यार मिल जाता है। पर जरूरत है दोनों बच्चों को एक-दूसरे का मान-सम्मान बनाए रखना सिखाने की। भाई बेशक शारीरिक दृष्टि से बलशाली हो सकता है, लेकिन क्या एक बड़ी बहन अपने हौंसले और अपने दम-खम से अपने भाई की रक्षा नहीं कर सकती?
शायद बड़े कभी अपने बच्चों में जानबूझ कर भेदभाव नहीं करते। लेकिन लड़का-लड़की में भेदभाव उनसे अंजाने में ही हो जाता है। एक समय था, जब लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए घर-परिवार के किसी पुरूष पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ लड़कियां भी आत्म-निर्भर हो रही हैं। वे भी दूसरों से अपनी सुरक्षा कर सकती हैं।
कुछ ऐसा ही चेतना और निधी ने भी किया। उनका छोटा भाई उनसे कुछ 8 साल छोटा है। वे दोनों अपने छोटे भाई से बहुत प्यार करते हैं और साथ में उसका ध्यान भी रखती हैं। वे हर रक्षा-बंधन पर प्यार से भाई की कलाई पर राखी बांध कर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। वे जानती हैं कि उनका भाई उनकी सुरक्षा अभी नहीं कर सकता। लेकिन वे अपने भाई को दूसरों से जरूर बचाती हैं। उनके लिए सुरक्षा का वचन लेना मायने नहीं रखता, बल्कि वे अपने भाई के लिए सुरक्षा कवच का काम करती हैं।
आज भी कितने ही परिवार ऐसे हैं, जहां भाई छोटे हैं और अभी अपनी बहन की सुरक्षा करने के काबिल नहीं है। पर फिर भी भाई भले छोटा हो, लेकिन उसे घर में अधिक अहमियत दी जाती है और उसे कहा जाता है कि उसकी बहनों की सुरक्षा उसकी ही जिम्मेदारी है। लेकिन वहीं कुछ परिवारों में बहन छोटी हो या बड़ी या फिर उसका कोई भाई न हो, उसे अपनी सुरक्षा खुद करना सिखाया जाता है। क्योंकि हर जगह उसका भाई उसके साथ नहीं हो सकता।
कई परिवारों में बुआ अपने भाई के साथ-साथ भतीजों को भी राखी बांधती हैं। कुछ ऐसा ही हमारे घर में भी होता है। मेरी बुआ रक्षा-बंधन के दिन सिर्फ मेरे पापा और भाई के लिए ही नहीं, बल्कि मेरे लिए भी राखी लेकर आती थीं। क्योंकि उनका मानना था कि यह राखी उनका प्यार है, जो वे अपने भाई, भतीजे के साथ-साथ मेरे लिए भी लेकर आती हैं। उनकी राखी ने न सिर्फ मेरे अंदर आत्म-निर्भर होने का साहस भरा, बल्कि उन्होंने एक प्रथा को ही नया रूख दे दिया, जिसमें घर की एक बेटी दूसरी बेटी को सहर्ष प्यार का तोहफा भेंट करती है।
आज माता-पिता को चाहिए कि वे रक्षा-बंधन के महत्व को बहन की सुरक्षा से बदल कर भाई-बहन के प्यार और सम्मान से जोड़ें, ताकि घर में किसी भी प्रकार का भेदभाव होने की गुंजाइश ही न बचे। ऐसे कई उदाहरण हमारे समाज में मौजूद हैं, जहां बहनों ने शायद कभी बता कर नहीं, पर कई बार एक-दूसरे की रक्षा जरूर की है। तो क्या अब भी आप यही मानेंगे कि रक्षा-बंधन जैसे त्योहार के लिए अब भी भाई और उसके सुरक्षा के वचन का होना जरूरी है या सिर्फ एक-दूसरे के प्रति मान-सम्मान और प्यार ही काफी है?
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