आप अपने बच्चे को बाहरी खतरों से बचा सकते हैं या आप इस बात की भी पूरी कोशिश करेंगे कि आपकी अनुपस्थिति में भी वह सुरक्षित रहे। लेकिन तब आप क्या करेंगे जब दुश्मन बाहर नहीं, बल्कि खुद बच्चे के अंदर छुपा बैठा हो। जब खतरा बच्चे के भीतर ही हो और आप उसे देख ही न पा रहे हों। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आज के समय में बेचैनी और तनाव बच्चों में बीमारी की तरह फैल रहे हैं। इस बात की पूरी आशंका है कि इन दोनों समस्याओं पर आपका ध्यान ही न हो और उनके बुरे परिणाम देखने को मिलें। इसीलिए जरूरी है कि आप खुद से प्रश्न करें कि कैसे मुझे पता चलेगा कि कब मेरे बच्चे को काउंसलिंग या परामर्श की जरूरत है। और यह सवाल आप आज से ही खुद से पूछना शुरु कर दें।
आपके बच्चे को कोई मानसिक समस्या हो या न हो, लेकिन आपके पास मौजूदा जानकारी आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती है। संकेतों और लक्ष्णों के बारे में जानकर आप बच्चे के इलाज में होने वाली देरी को रोक सकते हैं। क्या आपके बच्चे को परामर्श की जरूरत है, इस सवाल का जवाब आप यहां बताए 4 संकेतों को देख कर दे सकते हैं:
1. लंबे समय से नींद का अनियमित पैटर्न
बेचैन मन, शरीर को ढंग से सोने भी नहीं देता। जब आपका दिमाग तनाव से ग्रसित होगा तब बेवक्त नींद आएगी। लगभग एक सप्ताह से ही आपके बच्चे की नींद में बदलाव हो रहे हैं, तब तो यह सामान्य बात है, लेकिन अगर यह पैटर्न दो सप्ताह या 15 दिन से अधिक चले तो यह संकेत है कि आपके बच्चे को परामर्शदाता से मिलने की जरूरत है। ऐसे में बच्चा रातभर सो नहीं पाता और वह अपनी नींद को पूरा करने में भी असमर्थ महसूस करता है। बैचेन दिल और दिमाग का सबसे पहला असर नींद पर पड़ता है। अपने बच्चे के नींद के पैटर्न को गौर से देखें कि क्या वह सामान्य है या नहीं।
2. तेजी से बर्ताव में बदलाव
हर किसी को बुरे दिनों का सामना करना पड़ता है, जिस वजह से एकदम से गुस्सा आना जाहिर सी बात है। साथ में बढ़ते बच्चे को उनके आस-पास और उनके शरीर में होने हार्मोनल बदलावों को भी स्वीकार करना पड़ता है, जिसकी वजह से भी वे थोड़े चिड़चिड़े हो जाते हैं। लेकिन अगर बच्चे के बर्ताव में गुस्सैलपन जल्दी-जल्दी देखने को मिले जो आपके मापदंडों से भी बाहर हो तो आप समझ सकते हैं कि आपके बच्चे को परामर्श की जरूरत है। अगर आपका बच्चा भी ज्यादा नखरे कर रहा हो या छोटी-छोटी बात पर आपको धमकी दे रहा हो तो आपको प्रोफेशनल मदद की जरूरत है।
3. किसी भी काम में उत्तेजना की कमी
तनाव में रहने की वजह से बच्चे दांतों को ब्रश करने से लेकर नहाने, या स्कूल जाने से लेकर खाने तक जैसी रोजमर्रा की गतिविधियों में कोई उत्तेजना नहीं दिखाते हैं, बल्कि अपने कमरे को बंद कर अपने बिस्तर पर लेटे रहते हैं। तनाव से ग्रसित लोगों को लगता है कि आगे अब कुछ करने को बाकी नहीं रह गया है। उनके जीवन में कोई भी चीज का कोई मतलब नहीं है। अगर आपके बच्चे का जीवन भी खतरे में हो तो आप समझ सकते हैं कि उन्हें काउंसलिंग की जरूर है।
4. हर बात की चिंता करना है चिंता का विषय
अगर साधारण शब्दों में कहा जाए, तो बेचैनी भविष्य में बहुत अधिक घर कर लेती है। स्कूल के किसी काम या परीक्षाओं के बारे में परेशान होना अच्छा है, लेकिन खाने, लोग क्या कहेंगे, बाहर खड़े अजनबी, मौसम और इस तरह की रोजमर्रा की चीजों के बारें में लगातार चिंता करते रहना, आपको असमर्थ बना दें तो यह सामान्य बात नहीं है। लंबे समय से चलती आ रही बेचैनी अवसाद की नींव होती है, इसीलिए ऐसे समय में आपके बच्चे को परामर्श की जरूर है।
अपने बच्चे के लिए एक सुलझे हुए माता-पिता बनें। बच्चे की समस्या को संकेतों से समझने की कोशिश करें और उसके सुनहरे आज और भविष्य के लिए जरूरत पड़ने पर उसकी काउंसलिंग भी करवाएं।
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